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Rishika Inamdar

Abstract Drama Tragedy

4.8  

Rishika Inamdar

Abstract Drama Tragedy

एहसासों का फेरा

एहसासों का फेरा

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381


एक रंग की होती नहीं है रौशनी 

पर एक रंग में ढलता ज़रूर है अँधेरा 

खुशियों के नज़ारे कई 

पर तन्हाई का आलम कितना गहरा 


एक तरफ है सैलाब मुझ में 

टकराती रही मैं मौज में 

उससे देखो तो कोई  

कैसे पत्थर सा वहीं है ठहरा 


चैन नहीं, शोर है कितना 

फिर भी यहीं लौट के आते हैं सारे 

यही तो है अपना बसेरा 


बस अब ढलने को है रात , 

अंजाम पे आने को है कोई बात 

वह आ रहा है अब एक नया उजाला , एक नया सवेरा 


फ़साने रिश्तों के लिखे बरसों से आँखों ने 

अब उतरेगी कागज़ों पे लहू की स्याही

बन जायेगा हर अर्फ बेगाना, 

जुड़ा होना अब उनका इशारा 


सफर शुरू हुआ था  

तब कहते थे, जो मेरा वह तेरा 

यह कहाँ आ गये हैं साथ चलते चलते  

जो पूछते हैं, क्या तेरा, क्या मेरा 


कांटो के बीच खिल गए दो गुल 

खिज़ा चिलमन में बदलने लगे  

महक रहा था आलम इनसे  

आशियाँ मेरा इनसे सुनहरा  


मासूम कितनी, मुस्कान इनकी  

मेरी हकीकत मेरी ज़िंदगानी इनकी 

आँखों के नूर, दिल की आस 

इन्ही से तो है मेरा जहां सारा 


सच ही तो है एक रंग की होती नहीं है रौशन

पर एक रंग में ढलता ज़रूर है अँधेरा 

खुशियों के नज़ारे है इन्ही से तो 

पर तन्हाई का आलम मेरा कितना गहरा 


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