एहसासों का फेरा
एहसासों का फेरा
एक रंग की होती नहीं है रौशनी
पर एक रंग में ढलता ज़रूर है अँधेरा
खुशियों के नज़ारे कई
पर तन्हाई का आलम कितना गहरा
एक तरफ है सैलाब मुझ में
टकराती रही मैं मौज में
उससे देखो तो कोई
कैसे पत्थर सा वहीं है ठहरा
चैन नहीं, शोर है कितना
फिर भी यहीं लौट के आते हैं सारे
यही तो है अपना बसेरा
बस अब ढलने को है रात ,
अंजाम पे आने को है कोई बात
वह आ रहा है अब एक नया उजाला , एक नया सवेरा
फ़साने रिश्तों के लिखे बरसों से आँखों ने
अब उतरेगी कागज़ों पे लहू की स्याही
बन जायेगा हर अर्फ बेगाना,
जुड़ा ह
ोना अब उनका इशारा
सफर शुरू हुआ था
तब कहते थे, जो मेरा वह तेरा
यह कहाँ आ गये हैं साथ चलते चलते
जो पूछते हैं, क्या तेरा, क्या मेरा
कांटो के बीच खिल गए दो गुल
खिज़ा चिलमन में बदलने लगे
महक रहा था आलम इनसे
आशियाँ मेरा इनसे सुनहरा
मासूम कितनी, मुस्कान इनकी
मेरी हकीकत मेरी ज़िंदगानी इनकी
आँखों के नूर, दिल की आस
इन्ही से तो है मेरा जहां सारा
सच ही तो है एक रंग की होती नहीं है रौशन
पर एक रंग में ढलता ज़रूर है अँधेरा
खुशियों के नज़ारे है इन्ही से तो
पर तन्हाई का आलम मेरा कितना गहरा