विरांगना
विरांगना


श्रृंगार सोलह तार कर
वियोग योग धार कर
विधवा नहीं वीरांगना
वनवास जीवन सार कर
आँसुओं के घूँट पी
गर्वित मगर बिलखता जी
विधवा नहीं वीरांगना
अंतिम विदा प्रिय को दी
कैसे जीवन व्यतीत हो
पूरी ये कैसे रीत हो
विधवा नहीं वीरांगना
अब हौसलों की जीत हो
परिवार के लिए मुस्का रही
हर फर्ज़ को निभा रही
विधवा नहीं वीरांगना
पुत्रवधु, पुत्र बन दिखा रही