मेरा ज़मीर
मेरा ज़मीर
अगर मुश्किलें हिमालय है.. तो विश्वास कैलाश है....
वक्त रहते कुछ अपनी मिसाल लिख दे.....
वरना जिंदगी चलती फिरती लाश है..
लफ्जों की बात जुबां पर आ ही जाती है....
शब्दों का असर कुछ ऐसा होता है....
लिखते लिखते कलम में धार आ ही जाती है..
बात निकली है गर दिल से..तो दूर फ़लक तक जाएगी...
लाख लगा ले दाग ..दामन में ज़माना..
अपने पाक साफ रवैया से..जिंदगी रूहानी हो जाएगी..
सफर है ये.. शिकायतें तो होंगी ही..
शतरंज सी जो चल पड़ी है जिंदगी..
वक्त की शय पर ..बदलते पासे तो होंगे ही..
मुद्दत- ए-वफ़ा से ..ज़मीर मेरा कहांँ अनजान है..
ये अल्फाज ही तो हैं...जो मेरी पहचान हैं...
मुकर्रर- ए -जिंदगी में क्या हासिल है इसकी कोई फिक्र नहीं..
दे दूँ किसी को दग़ा....यह शौक हुनर हासिल नहीं।