मेरा सत्य
मेरा सत्य
Dr. Poonam Verma
इतना बेचैन क्यों है ?तू मेरा मन,
यह किसने सवाल किया ?
कि तुम हो कौन?
जो सवाल इतना करते हो ।
तुम्हारे इन सवालों से बैचेनी और भी
बढ जाती है।
स्वयं से स्वंय का जबाब मांगती उद्विग्न हो,
शांति को पुकारती हूँ ।
जो बाहर दिखती नहीं और
अंदर तो वैसे ही कोलाहल है।
मत पूछो ऐसे सवाल जो
बेचैनी बढ़ाते हैं। जिसका जवाब
ढूंढते - ढूंढते बस इतना
ही तो हाथ लगता है ,नेति नेति यानी है भी, नहीं भी ।
यह भी नहीं ,वह भी नहीं।
अपने होने का सत्य मुस्कुरा उठता है,
यह पूछते हुए, कि कौन हूँ मैं ?
इसका होना जागृत में भी है।
वह रहता निद्रा में भी है ।।
मेरा होना ही बस एकमात्र सत्य है ।
तो औरों के सत्य से उलझू क्यों ?
कर्म और काल के पहिये से बंधे ,
जीवन की इस गाड़ी को मेरा सत्य चलाएगा।
सही_गलत का सामूहिक सत्य से ,
मेरा मार्ग ना रोको कोई ।
जाने दो मुझे अपने पथ पर
दूर कहीं मुझे जाना है।