मेरा परिचय
मेरा परिचय
थकी नहीं हूं, रुकी भी नहीं हूं
बेड़ियों के बोझ को उठाये
उन्हें काटने की जुगत करती
लगातार चल रही हूं मैं।
क्यों कि मैं
नहीं हूं गांधारी
कि बांध लूं पट्टी
अपनी आंखों पर
ओढ़ लूं तिमिर अमावस्या का
कि दिखाई न दे
शतरंज की गोटियों में
पलता हुआ महाभारत।
नहीं हूं सीता भी मैं
ग़लत का प्रतिकार
धर्म है मेरा
मैं समा नहीं सकती धरती में
आकाश पर अधिकार है मेरा।
मैं पत्थर की अहिल्या नहीं
मैं तो बहती हुई नदी हूं
जिसकी गोद में
पलता है जीवन
महकते हैं खेत
मुस्कुराती है धरती
खिलखिलाता है बचपन
गीत गाता है सावन
झूमता है यौवन
हां....स्त्री हूं मैं
जिसे भगवान ने
बनाया तुम्हारी मां।