Babu Dhakar

Classics Inspirational

4.5  

Babu Dhakar

Classics Inspirational

मेरा मन

मेरा मन

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मैं, मेरा मन‌ और मेरे अहसास

क्या है पास और क्या है रूखसात

नासमझ है मेरे मन‌ से मन की बात 

मन में चूभती विचारों की तीरों को सलाम।


राग मेरे मन का विरागी हुआ है

जलता हुआ अंगार सा प्रतीत हुआ है

मन मनन करते करते हारा हुआ है

चारों ओर मन मेरा भटकता हुआ है।


एक अलग ही दृश्य नजर आया

धड़कनों में तडपनों का सैलाब आया

निकल‌ती ही नहीं यह विचारों की आंधी

मन में मेरे बसती रही तनावों की झांकी।


मन मुताबिक तो वैसे कभी पाया नहीं

मैदान छोड़ कर के भी युद्ध होता नहीं

मैं अभी शातिर सोच नहीं बना पाया

मैं इसलिए अपने खातिर कुछ नहीं कर पाया।


सुन मेरे मन तुम ही हो मेरे दर्पण

मेरे लिए एक तुम ही हो संबल

जहां तक हो मेरे विचारों में तुम हो

मेरे मन मेरे लिए मधुवन तुम हो।


सांसो के सितार में मन तेरा प्रवाह हैं

आंखों के इशारों में मन तेरा ही प्रकार है

रातों के अंधेरों में मन तेरा ही प्रसार है

दिनों के उजालों में मन तेरा ही प्रकाश है।


मन तू मेरा मकसद तो बता

प्रण तूने लिया है तो तू निभा

मैं नहीं हूं अपनी करनी का सुत्र धार

तुम ही हो मेरे मन मेरे कर्मो के आधार।


तू उल्लेख करता है भ्रम का 

तू रचना करता है भव्य का

तू सरल स्वभाव में उग्रता भरता

तू मन मेरे व्यवहार में सजग हो जा।


तू क्या कहे और मैं क्या सूंनू

पता नहीं चल पाये कि क्या बोलूं

तेरे संग में कुछ जानकारीयां प्राप्त करलूं

मेरे मन मैं कुछ मेरे‌ लिए भी व्यक्त हो जाऊं।


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