मेरा क्या क़ुसूर
मेरा क्या क़ुसूर
ए दिल! बता मुझको
उनसे दिल लगाने की
सज़ा मिली तो
क्यों मिली मुझको ।
मेरा क्या क़ुसूर, गर
इस दिल ने सिर्फ और
सिर्फ चाहा, तुझको ।
तेरी ख़ुशी की ख़ातिर
फ़ना भी किया ख़ुद को।
फ़िर भी संगदिली की
हद दिखा ही दी , तूने
जिस पल, खुदगर्ज़ी में
अपनी तूने किया था
रूसवा मुझको ।।
मेरा क्या क़ुसूर था ,
तुझसे दिल लगाना
या तुझे अब तलक
इस दिल मे बसाना ।
नासमझ,नादां है
ये दिल भी
तेरे सिवा और कोई
चाहत न रही इसको ।