गाँव के साये तले
गाँव के साये तले
पहाड़, झील, नदियाँ, तलाव,
लहलहाती खेत, खलिहान परिन्दों की चहलकदमियां ......।
गाँव के किसी गलियों से नुक्कड़ तक
लोगों की खैरियत जान लेना, गाँव की खूबसूरती है।।
अगले मोड़ पर छोटा सा घर मेरा है,
उस मोड़ पर अब गुलमोहर का पेड़ नहीं ।
बहुत कुछ बदला है इन दिनों में
जब से शहर बसने लगा है इन गलियों में।।
भूख नहीं मगर रिश्तों में दरकार है।
परिंदों की चहलकदमियां
गाँव की रिश्तों में खुशहाल है।।
देश -विदेश से परिंदों का झुंड आना
अपनी संस्कृति छोड़ जाना।
पलायन करते लोग देश -विदेशों से आना -जाना,
हमारी भाषा, संस्कृति को बदल रहा है।।
दादी -नानी की लोरी ज़िन्दा रहना,
पर्व -त्योहार, शादी के भोज में एक पाँत, बैठ कर खाना।
अपनी भाषा, संस्कृति को ज़िन्दा रखना
यही हमारी गाँव की खूबसूरत संस्कृति का हिस्सा है।।
