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Sasmita Patanaik

Classics Fantasy Children

4  

Sasmita Patanaik

Classics Fantasy Children

मेरा बचपन

मेरा बचपन

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अच्छा सा लगे, सचा सा लगे,

मेरे बचपन का सपना मुझे बड़ा प्यारा सा लगे


मम्मी पापा का वो सुबहै बिस्तर से उठाना,

और बाहों में लेके बड़े प्यार से बालों को सहलाना


हर ख्वाहिश को बड़े प्यार से नकारना,

और मेरे थोड़े नखरे करने से वो उनका मान जाना


दोस्तों से साथ बातें में वक़्त का पता ना चलना,

कभी कभी तो पढ़ाई के बहाने tv पे क्रिकेट देखना


संग सहेली वो खुले हवा में खेलना,

खोखो, कब्बडी, लुक्का छुपी या गिल्ली दंडा


भुलाये न भूली जाती वो वक़्त वो लम्हा,

काश फिर से वोहां कोई मुझे ले जाता


जानो,

बोहत वक़्त था ज़िन्दगी समझने को,

खुले आसमान के नीचे खुले हवा में खो जाने को


अफ़सोस,

आज के भाग दौड़ के दुनिया में,

ये बचपन धुन्दला सा लगे,

खुले आसमान के बदले चार दीवारी दोस्त सा लगे,


यारों से ज्यादा मोबाइल प्यारा लगे,

हक़ीक़त की दुनिया से मानो फासला सा लगे,

वक़्त बदल रहा और बच्चों की ख्वाईशें भी,

बढ़ रही जुस्तजू भीड़ में आगे रहने की


वो बातों की मिठास वो प्यार अब ना रहा,

आरे वो ज़िन्दगी की ठहराव और अब ना रहा।


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