गुफ़्तगू
गुफ़्तगू
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तन्हाई से घबराती थीअभी खुशिओं से
नज़रें चुराना चाहती हूं
खामोशी से मोहब्बत करती थी
पर अब किसीसे गुफ़्तगू करना चाहती हूं।
इस शहर की भीड़ में
कहीं खो जाना चाहती हूं
बेपरवाह होके खुली सांसे लेना चाहती हूं
आज किसी से गुफ़्तगू करना चाहती हूं।
दफन सारे एहसास को मेहसूस करना चाहती हूं
उलझे यादों को सबारना चाहती हूं
उन लम्हो को फिर से जोड़ना चाहती हूं
अब किसीसे गुफ़्तगू करना चाहती हूं।
दर्द को अब महबूबा बनाना चाहती हूं
हर ज़ख्म को प्यार करना चाहती हूं
पल भर के लिए ही सही
अब किसीसे गुफ़्तगू करना चाहती हूं।
तड़पती दिल को करार देना चाहती हूं
दरिया हूं समंदर में मिलना चाहती हूं
प्यार की गहराई को समझना चाहती हूं
आज किसीसे गुफ़्तगू करना चाहती हूं।