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Rinku Bajaj

Classics

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Rinku Bajaj

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मेरा बचपन

मेरा बचपन

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क्लास में पाँव रखते ही

बचपन सामने आ गया

बच्चों के मासूम चेहरों में

सूरत अपनी दिखा गया !


क्या दिन थे वो बचपन के

दबे पांव हम जाते थे

चुपके से आखिरी बेंच पर

सरका के किसी को बैठ जाते थे !


एक दूसरे के कानों में घुस कर

खुसर-फुसर हम करते थे

न जाने वो क्या थे राज़

सांझा जो हम करते थे !


याद आई उस टीचर की

मुस्कान पे जिसकी सब मरते थे

अल्हड़ सी उस उम्र में कैसे   

हम मोहब्बत का दम भरते थे !


पहला एहसास था ये उम्र का

हर अदा पर उसकी मरते थे

शरारतों का ये आलम था

वो वक्त बड़ा ही ज़ालिम था !


कभी किसी की नकल लगाना 

कभी बेवजह किसी को सताना

पढ़ाई के नाम पर बहाने बनाना

काला अक्षर भैंस बराबर बताना !


था ये सब बचपन का खज़ाना

बड़ा ही अदभुत था वो ज़माना

बन के टीचर जो कक्षा में आई

बचपन की यादों से आँख भर आईं!


बीता बचपन फिर नहीं आता

दोस्त वैसा फिर मिल नहीं पाता

बन जाता है जो वक़्त यादगार

वो आता है फिर याद बार बार !


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