मदद के हाथ बने
मदद के हाथ बने
दीवाली की रात थी सड़क पार जाना था
अचानक मेरी नजर एक बच्चे पे पड़ी जो जाना पहचाना था
वो बटोर रहा था पटाखे जो फूट ना पाए थे
उन फुलझड़ियों को जो अधजले बच्चों ने गिराए थे
वो इन सब चीजों को थैली में भर रहा था
मुझे समझ न आया ये बच्चा क्या कर रहा था
फिर मेरी निगाह उसके वेश-भूसा पर पड़ी
वो मासूम अपने गरीबी से लड़ रहा था
घर में वादा किया था अपने छोटे भाई बहनों से
उसे पूरा करने को जद्दो-जहद कर रहा था
करता भी क्या जेब में पैसे नहीं थे
चन्द घंटों की ख़ुशी खरीद ले उसकी हालत ऐसे नहीं थे
पर वो खुश था की झोला भरता जा रहा था
अपने बड़े भाई होने पे वो कितना इतरा रहा था
उसके मन की व्यथा कम हो रही थी
ये मंजर देख मेरी आंखें नम हो रही थी
कभी कभी बच्चे उसे बुरी नजरों देखे
फेंके पटाखे उसके हाथों से चीन लेते
अब मुझसे ये देख बर्दाश्त ना हो पाया
मैं करीब जा के उसको अपने पास बुलाया
वो डरा, सहमा, हिचकिचाता बढ़ा
हाथ जोड़ कर मुझसे गिड़ -गिड़ाने लगा
मैंने उसको लिया बगल के दुकान पहुंचा
बेटा क्या लेना है ले लो उससे पूछा
उसकी आँखों में श्रद्धा के भाव दिख रहे थे
उसके दिल में ख़ुशी के फूल खिल रहे थे
वो सब कुछ लिया जो उसके दिल ने कहा
गले से लिपट के वो रोने लगा...