मौत से ठन गई !
मौत से ठन गई !
इस कश्मकश से जूझने का मेरा इरादा न था,
जिंदगी की एक मोड़ पर मौत से मिलेंगे इसका वादा न था,
सामना जब हुआ रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा मुझे की ज़िन्दगी से आज मौत बड़ी हो गई।
मौत की उमर क्या है? दो पल की भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज, कल की नहीं।
मैं जी भर जी ली, अब मैं मन से मरूँगी,
लौटकर आऊँगी, कूच से क्यों डरूँगी?
ऐ मौत तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर तू मुझे आज़मा।
मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का है ये सफ़र,
शाम हर सुरमई सी, रात बंसी का मधुर स्वर।
बात ऐसी नहीं कि मुझे कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए से मिले कुछ कम भी नहीं।
प्यार इतना परायों से मुझको है मिला,
न अपनों से करणी हैं कोई सिकायत गिला।
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।
आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है।
पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देखकर मेरी हिम्मत मौत भी मुझसे डर गई
देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई।
मौत से ठन गई।
