STORYMIRROR

Shashi Singh

Romance Fantasy

4  

Shashi Singh

Romance Fantasy

मौसमों में मिलूंगी मैं

मौसमों में मिलूंगी मैं

2 mins
574

पतझड़.... सावन.... बसंत.... बहार..

एक बरस के मौसम चार .....मौसम चार ...

आपस में ही गड्डमड्ड हो जाते हैं...

रेडियो से निकले गाने के बोल और बारिश की बौछार।


गाने के बोल से बुनने लगती हूँ जीवन के धागे को।

अरे !...इतनी जरूरी बात तो तुम्हें बताना भूल ही गयी।

हर बार मैं इंतजार करती हूँ तुम्हारा....

तुम आते हो....

मेरे सामने होते हो...

सामने होकर भी ...

कभी मुझ तक पहुँच पाते हो कभी नहीं।

ये मिलना बिछड़ना,आना जाना तो लगा ही रहता है।


यूँ तो हर बार मिल जाती हूँ तुम्हें

देहरी पर खड़ी हुई.... तुम्हारी बाट जोहती।

पर कभी ऐसा हो कि तुम आओ,

और मुझे ना पाओ,

तो निराश ना होना...

मिलने की आस ना खोना।


तुम्हें पता है ना... कि मैं जीती हूँ हर मौसम को

अपने अंदर पूरी शिद्दत से।

मुझे ढूँढने की कोशिश जरूर करना उन मौसमों में

कहीं ना कहीं तो दिख ही जाउँगी।


पतझड़ में ठूँठ बनकर तुम्हारे इंतजार में....

नहीं तो आहट पाते ही तुम्हारे आने की,

आँगन के किसी कोने में झूमकर बरसते हुये मिल जाउँगी।


बसंत की अमराइयों में,

फूलों की क्यारियों में,

दूर तक फैली हरी मखमली चादर में

तो बसती है मेरी जान।

हो सकती है मेरी मौजूदगी इन सबमें

गर तुम कर सको मेरी पहचान।

नहीं तो मुझे जरूर पा लोगे किसी बगिया में

कुंलाँचे भरते किसी खरगोश या तितली के पीछे।


तब भी ना मिलूँ तो बस महसूस कर लेना मेरा अंश

दूर तक फैली हरियाली को मेरा यौवन जानकर।

तुम्हारी आस में... सुबह की घास में..

चमकती ओस की बूँदों को

मेरी आँखों की कोर से टपका खारा शबनम मानकर।


सुनो....तब भी ना दिखूँ तो....

अंबर में उस नये जा टँके तारे को लेना निहार।

जब भी मुझसे मिलना चाहो तो 

उन्ही से मिल लेना बार बार।


समझ लेना कि हमारा मिलना..

समय के अगले चक्र में ही नियत है अब अगली बार।

फिर वही ......

पतझड़.... सावन..... बसंत..... बहार...


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance