यात्रा
यात्रा
हाँ मैं भी जरूर करूँगी एक यात्रा कभी...
तिनका तिनका जोड़ रही हूँ हौसला
उनसे भी चुरा रही हूँ चुटकी चुटकी भर
जो नाप चुके हैं हर पहाड़ी, हर घाटी,
गहरी नदियां और
बड़े बड़े घास के मैदान
गर्म रेत पर छाप चुके है पाँवों के निशान।
सहेज रही हूँ कुछ जरूरी सामान
सफर की खातिर
मसलन वक्त,बेपरवाही
और थोड़ी सी बेशर्मी भी।
हाँ मैं जरूर करूँगी एक यात्रा कभी...
इधर उधर मंडराती तितलियों से,
एक शाख से दूसरी पर फुदकती
बुलबुल मैना गौरैया और हमिंग से
इसीलिए ले रही हूँ थोड़ी आवारगी।
सीख रही हूँ आज़ाद परिंदों से बतियाना।
और आसमां छूते दरख्तों को
गले लगाकर महसूस करना।
सूरज को छूने की उनकी चाहत और हौसलों को
अपनी रूह में जज़्ब करना।
अलमस्त हवाओं की सरगोशियों को
पसीने से भीगी कनपटी पर महसूस करना।
सुनना है और दिल मे सहेज लेना है
उन्मुक्त झरनों के शोर और
इस देह में कैद
हृदय के धड़कन की जुगलबंदी।
बरसात की बूंदों से तर जुल्फों को
यूँ चल देना बेफिक्री से झटककर।
खुद के रास्ते खोजने हैं,और चुराना है
उनपर चलने का सलीका
नितांत अपने हिस्से का गिरना सम्हलना
और फिर सहारे के लिए थाम लेना
किसी ठूंठ या बरसों से आस देखते
पथरा गयी किसी चट्टान को।
हाँ मैं भी जरूर करूँगी एक यात्रा कभी
लहरों की रवानगी महसूस करना है रगों में
लहराना है बल खाना है इतराना है खूब।
देवदार सा बढ़ना है सूरज की ओर
थोड़ा सा पत्थर बनना है,
और थोड़ी सी दूब।
मुझे होना है धरती से आकाश,
आकाश से ब्रह्मांड।
कदमों के निशान छोड़ जाना है
इसके हर ओर-छोर।
हाँ मैं भी करूँगी एक अनंत यात्रा.....कभी.. जरूर...