मैं तुम्हें लिखूँगी
मैं तुम्हें लिखूँगी
चांदी उग आएगी ज़ब बालों में
जिंदगी के सबक झुर्रिया बन जायेंगे
मशरूफ है आज, हम तुम कल के लिए
मगर कल देखना जरूर तन्हा रह जायेंगे
कभी सर्दी की धूप खिली होगी
कभी उमस साँझ में घुली होगी
बरसते बादल की बूंदे अंजुली में भर के
अतीत के दर्पण में जरा ताक झाँक के
भूली बिसरी यादों में,जोड़ कर एहसास आज के
और कांपते हाथों से कलम उठा के
फिर से अपनी सोच लिखूँगी
मैं तुम्हें ही उस दौर में लिखूँगी।