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मैं तेरे डर से रो नहीं सकता

मैं तेरे डर से रो नहीं सकता

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मैं तेरे डर से रो नहीं सकता

गर्द-ए-ग़म दिल से धो नहीं सकता।


अश्क यूँ थम रहे हैं मिज़गाँ पर

कोई मोती पिरो नहीं सकता।


शब मेरा शोर-ए-गिर्या सुन के कहा

मैं तो इस ग़ुल में सो नहीं सकता।


मसलहत तर्क-ए-इश्क़ है नासेह

लेक ये हम से हो नहीं सकता।


कुछ ‘बयाँ’ तुख़्म-ए-दोस्ती के सिवा

मज़रा-ए-दिल में बो नहीं सकता।


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