STORYMIRROR

Priyanka Khandelwal

Abstract

5.0  

Priyanka Khandelwal

Abstract

मैं (स्त्री)

मैं (स्त्री)

1 min
204


अपने आप से प्यार करती मैं, परिंदे की तरह उड़ती मैं

उड़ती जुल्फों के साथ यहाँ से वहाँ फिरती मैं


आज मजबूरियों की डोरी मे जकड़ी मैं

सहमी सी रोती - सुबकती अपने ही आँसू की पीड़ा ढ़ोती मैं,


आँगन बाबा के पाई खुशियो की हवा, आने वाली आँधियों से अपरिचित मैं,

खुशियो, हँसी, मखौल के साथ पली - बढ़ी मैं,


आज अकेलापन, सूनापन, सिसकियों में दबी मैं,

समाज के दिखावे, आडम्बरों में घिरी मैं,

सहन किए अत्याचार अपनों के ख़ातिर हँसी मैं


पढ़ी - लिखी पैरों पर खड़ी, फिर क्यों जंजीरों में जकड़ी मैं,

दिखावा समाज का समाज देखे, क्यों इन सब की चिंता में खपी मैं,


आज़ाद उड़ती उमंगे मेरी देखो, आज़ाद पतंग सी उड़ी मैं

बस उड़ी मैं ना मुड़ी मैं बस उड़ी मैं |



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract