"यादों से संन्यास
"यादों से संन्यास
ये इमली का बूटा ये नीम का पेड़,
सुनसान पड़े गलियारे में सन्नाटे का ढेर
कौन कहता है गाँव में शोर नहीं,
रात में पेड़ के साए में सोये किसान का दिल कहीं और नहीं l
रह - रहकर उसे वो अंधकार पुकार रहा है,
क्या पता बारिश हो जाए इसी आस में गला फाड़ रहा है l
छोटे से झरोखे वाला घर पुकार रहा है
कहाँ खो गई अपनों की दुनियाँ निहार रहा है
जहाँ पहले रिश्तों की बयार सी आती थी,
वहाँ सन्नाटा खुलेआम पैर पसार रहा है l
खाली दीवारों - दरारों से पीपल झाक रहा है
तुलसी के पत्ते की चाय को परिवार तरस रहा है
आज देखने को तरसता हूँ वो किवाड़ों की साकल
जहाँ मकान ख़ाली थे पर बंदोबस्त तगड़ा था
सुना है छोड़ कर अपनी गांव की थडियो को
वो आज चाय के लिए बड़ी दुकान जाते हैं
जो जाने जाते थे कभी अपने नाम से
वो अब मकान और बिल्डिंग नम्बर से जाने जाते हैं
शहरों की चकाचौंध से लरजते हो, गांव के बड़े घर को छोड़ कर,
चार दिवारों के मकान में अब बसते हो अपने गांव परिवार को छोड़कर..
कसूर किसी का नहीं समय की मांग है शायद
जो यादों से लिया सन्यास, पलट उस पल को आने दो
वो गांव, घर, खेत, थड़ी, अब याद आने दो
कसम से याद आने दो|
