“कोरोना का कहर “
“कोरोना का कहर “
भावनाओं के रहस्य से पर्दा उठ रहा है
कौन है मेरा अपना और कौन पराया इसका रहस्य खुल रहा है
भावनाओं की कमी न थी कभी मेरे शहर में
लेकिन अब हर कोई मिलने से झिझक रहा है।
जो हाथ एक आवाज़ पर आगे आते थे मदद को
उनका पता – ठिकाना अब धुंधला चुका है
नज़र लग गई या चुगली की किसी ने
मेरे शहर का हर आदमी अब बेगाना हो चुका है।
ख़बर मिली है मुझे कही से की हवा बहुत खराब है
मैंने पूछा क्योंक्या हुआक्या कोई हमसे नाराज़ है
आवाज़ न आई फिर किसी की तो हमने हवा से ही पूछ लिया
क्या किया तूने ऐसा, जो अपनों को ही हमसे छीन लिया।
मुस्कुराती हवा बोली नादान इंसान
कर्म करे तू और सबने किया भुगतान
सुधर जा और नेकी का रास्ता पकड़
नहीं तो ऐसे ही जिंदगी के रास्ते भटक।
परचम है तेरे हाथ में तो फहरा उसे
देख बाद में परचम बचेगा तू नहीं।-2
