वो शेर को मिलकर घेर रहे हैं
वो शेर को मिलकर घेर रहे हैं
वो शेर को मिलकर घेर रहें है,
चारों तरफ से उसे नौच रहे है।
अभी शेर सोया है शायद,
देश के आगे बढ़ने के सपने में खोया है शायद,
डर है कि सपना टूट न जाए,
मेरे देश के आगे बढ़ने का
ख्वाब कहीं टूट न जाये।
जागो, खोलो आंखें अपनी उस
प्रधान को ज़रूरत है हमारी।
दो पैसों के ख़ातिर ख़ुद्दारी बेचो न तुम्हारी,
साथ दो, विश्वास दो,
एक बार फिर से कमल का साथ दो।
