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Alok Singh

Abstract

5.0  

Alok Singh

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मैं रेल जैसा

मैं रेल जैसा

1 min
350


थमता कहाँ हूँ रुकता कहाँ हूँ

हूँ पटरियां मैं तो

साथ खुद के चलता हूँ

पर मिलता कहाँ हूँ


ज़िम्मेदारियों की

सवारियाँ लिए चलता हूँ

कभी खुद की

कभी परिवार की


ज़रूरतें पूरी करता हूँ

जैसे रेल पहुँचाती है

मुसाफिरों को

उनकी मंजिल पर


वैसे रिश्तों को खुद पर लाद कर

पार लगाता चलता हूँ

थमता कहाँ हूँ रुकता कहाँ हूँ

मैं दौड़ता भागता


खुद का होता कहाँ हूँ

इंजन सा खींचता रहता हूँ

अपने दिल के कई हिस्सों को

धड़कता हूँ


पर धड़कनों को सुनता कहाँ हूँ

गुजरता जब हूँ मैं

अपनों की कसौटी के पुल से

थरथराता हूँ घबराता हूँ


पर मैं खुद से हारता कहाँ हूँ

देर हो जाती है जैसे रेल को

पहुंचने में एक स्टेशन से

दूसरे स्टेशन पर

कभी मौसम की वजह से


तो कभी समय की बेवफाई की वजह से

वैसे ही मुझे देर हो जाती है

कभी अपनों को मनाने में

तो कभी खुद को समझाने में

पर मैं हौसला खोता कहाँ हूँ


मैं रेल गाड़ी जैसा हूँ "गुमशुदा"

जाता हूँ आता हूँ ख्वाबों में

आँख खुलती है

तो भी मैं जाता कहाँ हूँ।


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