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रिपुदमन झा "पिनाकी"

Tragedy

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रिपुदमन झा "पिनाकी"

Tragedy

मैं राम नहीं

मैं राम नहीं

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आज फिर

एक सीता कलंकित हो गई

आज फिर एक गंगा को

मैली बताया जा रहा है

लगाया है लांछन

उस पर अपवित्र होने का

किया है लज्जित उसे

उसके ही अपनों ने

किया है कलंकित उस स्त्री को

जो समर्पित है अपने पति के प्रति

मन वचन कर्म से।

संबंधों के मर्यादा की

लक्ष्मण रेखा लांघने का

लगा है मिथ्या आरोप उस पर

पतिव्रता की पवित्रता पर

संदेह किया गया है

किन्तु

मैं राम नहीं,

जो अधमी रावण की

लंका में रहने के कारण

पतिव्रता सीता को

अपनी पवित्रता सिद्ध करने के लिए

अग्निपरीक्षा के लिए विवश करूं।

मैं राम नहीं

जो कर दूंगा उसका परित्याग

भेज दूं वनवास

करूं उसे अपने से दूर

किसी के अनर्गल,निरर्थक आरोप पर

यह जानते हुए भी

कि नहीं है उसमें कोई दोष

उसका तन, उसका मन

गंगा जल से भी अधिक पवित्र है।



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