STORYMIRROR

रिपुदमन झा "पिनाकी"

Tragedy

4  

रिपुदमन झा "पिनाकी"

Tragedy

मैं राम नहीं

मैं राम नहीं

1 min
198

आज फिर

एक सीता कलंकित हो गई

आज फिर एक गंगा को

मैली बताया जा रहा है

लगाया है लांछन

उस पर अपवित्र होने का

किया है लज्जित उसे

उसके ही अपनों ने

किया है कलंकित उस स्त्री को

जो समर्पित है अपने पति के प्रति

मन वचन कर्म से।

संबंधों के मर्यादा की

लक्ष्मण रेखा लांघने का

लगा है मिथ्या आरोप उस पर

पतिव्रता की पवित्रता पर

संदेह किया गया है

किन्तु

मैं राम नहीं,

जो अधमी रावण की

लंका में रहने के कारण

पतिव्रता सीता को

अपनी पवित्रता सिद्ध करने के लिए

अग्निपरीक्षा के लिए विवश करूं।

मैं राम नहीं

जो कर दूंगा उसका परित्याग

भेज दूं वनवास

करूं उसे अपने से दूर

किसी के अनर्गल,निरर्थक आरोप पर

यह जानते हुए भी

कि नहीं है उसमें कोई दोष

उसका तन, उसका मन

गंगा जल से भी अधिक पवित्र है।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy