मैं मजदूर हूँ
मैं मजदूर हूँ
मैं खुश हूँ, इसलिए कि मैं मजदूर हूँ
मैं मेहनत से नहीं डरता हूँ ,
सेवा का सपना देखता हूँ ।
गगनचुंबी महल बनाकर ,
मिट्टी के घरौंदे पर सोता हूँ ।।1।।
फिर भी मैं मैं खुश हूँ, इसलिए कि मैं मजदूर हूँ।।
ऊँची जागीरों का हूँ मैं पहरेदार ,
मेरा घर ईश्वर पर छोड़ आता हूँ ।
अनजान हूँ मैं ए सी के ठंडक से ,
भीग पसीने से शीतल हो जाता हूँ ।।2।।
फिर भी मैं खुश हूँ, इसलिए कि मैं मजदूर हूँ।।
बंजर भूमि को उपजाऊ बनाकर ,
सम ऋतुओं का फसल उगाता हूँ ।
द्वार -द्वार तक फसल पहुँचाकर ,
स्वयं हाट से खरीदकर खाता हूँ ।।3।।
फिर भी मैं खुश हूँ, इसलिए कि मैं मजदूर हूँ ।।
पर्वत काट मैं राह बनाता हूँ ,
बांध सरिता धार गिराता हूँ ।
जल विद्युत से जग रोशन कर ,
अंधेरे में सपरिवार सो जाता हूँ।।4।।
फिर भी मैं खुश हूँ, इसलिए कि मैं मजदूर हूँ ।।
पत्थर का भी सीना तोड़ ,
गैरों का हीरा तराशता हूँ ।
स्वप्न- सागर में गोता लगा ,
ऊँची सपनों में खो जाता हूँ ।।5।।
फिर भी मैं खुश हूँ, इसलिए कि मैं मजदूर हूँ ।।
देश की उन्नति, राज्य की प्रगति में ,
श्रम शक्ति से नव निर्माण करता हूँ ।
दो वक्त खुद्दारी की रोटी के लिए ,
देश विदेश तक पहचाना जाता हूं ।।6।।
फिर भी मैं खुश हूँ, इसलिए कि मैं मजदूर हूँ ।।
देश का कर्मवीर प्रधान हूँ ,
देश का विकास मेरे हाथों में।
स्व विकास न मैं कर सका ,
क्योंकि मैं भाग्य से मजदूर हूँ ।।7।।
फिर भी मैं खुश हूँ, इसलिए कि मैं मजदूर हूँ।।