मैं लिखूंगी प्यार
मैं लिखूंगी प्यार
उस दिन
जिस दिन
मनुष्यों की ईर्ष्या की
आग से
सुख जाएंगे
पेड़-पौधों के
हरे पत्ते
उजड़ना आरम्भ
होगा जंगल
और
धँसनी शुरू होगी
ऊँची पहाड़ी
मैं लिखूंगी प्यार
उस दिन
जिस दिन
नदी में पानी के बदले
बहेंगे लाल खून
और मनुष्यों के आँसू
मैं लिखूंगी प्यार
उस दिन
जिस दिन
बंजर हो जाएगी धरती
अन्न पैदा नहीं होंगे
सर ऊँचा कर खड़े रहेंगे
कैक्टस
लोगों की अभिलाषा
और आनंद
मर जायेंगे
साँस फूलने लगेगा
हिंसा की काली धुआँ से
मैं लिखूंगी प्यार
उस दिन
जिस दिन
तुम मुझे प्यार नहीं करोगे
प्यार मेरा कडुआ लगेगा
उसी दिन चला जाऊंगा
तुम्हें छोड़कर दूर देश को
छोड़कर जाऊँगा
तुम्हारे लिए
मिठा प्यार
ताकि महसूस कर सको
प्यार करने का दर्द