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Rohtash Verma ' मुसाफ़िर '

Tragedy Action Classics

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Rohtash Verma ' मुसाफ़िर '

Tragedy Action Classics

मैं लिखता हूं

मैं लिखता हूं

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कहीं कुछ तो टूटा है 

कहीं शायद बंधन है 

अनमेल रिश्ते, प्रेम, 

ये सब चंदन है 


इन्हीं में समर्पित जीवन 

अर्पित कुसुम -शब्द माला 

आह, वाह, घृणा, प्रेम-प्याला 

जो सोये हैं कहीं कोने में 

कुंठित होकर.... जिन्हें 

हर पल जगाने को! 

मैं लिखता हूँ भाव आने को!! 


मैं नहीं लिखता दो टूक कमाने को 

बस लिखता हूँ मानवता बसाने को 

द्वंद्व मिटाने को 

पक्षपात नहीं करता, 

नहीं करता समझौता उदर से, 

मैं लिखता हूँ एक घर से दूसरे घर तक,

विश्वास दिलाने को!

मित्रता अपनाने को! !


प्रतिष्ठा अक्षरों में अंकित! 

छंद, लय, भाव, अर्थ से सुशोभित! 

जिसमें गाता है एक मानव, 

रूप परिवर्तन कर ज्यों..... 

द्वार पर भिखारी, 

बोझा उठाते कंधे - पैर, 

जुठन पत्तल पर टिकी निगाह, 

विरहिणी की आह, 


कहीं रक्तरत भ्रूण, शोषित अबला, 

स्वेद से तर बदन कृषिक, 

घन, समीर, पर्वत, झरने, नदी नीर, 

प्रभा, धूप, संध्या, शब-स्वरूप, 

रज कण जो नव निर्मित धरा.... 

बदलती है स्वयं को पाकर 

सागर -सा कवि-हृदय, 


समय चक्र घूमाने को ! 

नश्वरता बतलाने को! 

मैं लिखता हूँ एकान्त स्वर में 

कोई गीत गुनगुनाने को ! 

दिल को बहलाने को ! 


बस मैं लिखता हूँ प्रेयसी को भूलाने को !

जिंदगी के अंतिम छोर जाने को।


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