मैं क्या लिखता कोरे पन्ने पे..
मैं क्या लिखता कोरे पन्ने पे..
सोचा कि कुछ लिख दूं,
मोहब्बत की दास्तां,
पर क़लम उठाया और रख दिया।
अचानक उसकी याद आई,
मैंने क़लम फ़िर उठाई,
सोचा कि अब तो कुछ लिख ही दूंगा
पर विचार बदल गया,
पैर डगमाये पर मैं संभल गया।
इस बार भी वो कोरा पन्ना
कोरा ही रह गया।
दिल में मोहब्बत थी,
ये बात वो जानती थी,
मैं क्या लिखता कोरे पन्ने पे,
वो तो मुझे अपना मानती थी।