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मिली साहा

Abstract Fantasy

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मिली साहा

Abstract Fantasy

मैं कोई एलियन नहीं

मैं कोई एलियन नहीं

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शहर से दूर जंगल के पास बसी हुई थी एक बस्ती,

जिनकी जीवन दरिया में चलती नफ़रत की कश्ती।

प्यार किस चिड़िया का नाम कोई न जानता वहांँ,

फूटी आंँख न भाते एक दूजे को ऐसा था वो जहांँ।


लड़ना झगड़ना धोखा देना सब की थी ये आदत,

स्वयं को भगवान समझ अपनी ही करते इबादत।

छोटी-छोटी बातों पर जान के हो जाते थे दुश्मन,

कहीं आते जाते नहीं एक ही जगह बिताते जीवन।


भूख गरीबी से बेहाल वो ज़िंदगी बस काट रहे थे,

ऐसी ही होती है ये ज़िंदगी बस यही समझ रहे थे।

एक दिन उस गांँव में आया एक सुंदर सा युवक,

सब देखने लगे उसे अचंभित होकर ध्यानपूर्वक।


भटक गया है रास्ता जब युवक ने उनको बताया,

बस्ती वालों को लगा वो जासूसी करने है आया।

यह कौन सी भाषा है, किस ग्रह से तुम आए हो,

ज़रूर अपने बदन में हथियार छुपा कर लाए हो।


क्या किसी भूत प्रेत आत्मा ने तुम्हें यहांँ भेजा है,

कहीं ये साया तो नहीं जिसने रूप ऐसा बदला है।

ये सब सुनकर भी युवक शांत चित्त मुस्कुरा रहा,

कौन सी दुनिया में रहते ये मन ही मन सोच रहा।


देख सबकी भाव भंगिमा, युवक थोड़ा घबराया,

फिर संभलकर प्यार से उनको सब है समझाया।

मैं कोई एलियन नहीं, तुम लोगों जैसा हूँ इंसान,

भटक गया रास्ता यहांँ इस जगह से हूंँ अनजान।


विश्वास करो मुझ पर शरण मांगने यहांँ आया हूँ,

मैं ना कोई आत्मा, ना भूत प्रेत ना कोई साया हूंँ।

पर उन लोगों को मुझ पे नहीं हो रहा था विश्वास,

हाथों में हथियार लिए अचानक आ गए मेरे पास।


जैसे ही किया मुझ पर वार, आंँखें मेरी खुल गई,

कहांँ चले गए सारे लोग और कहांँ वो बस्ती गई।

नज़र दौड़ाई इधर उधर पर कुछ भी ना था वहांँ,

ख़्वाब था शायद कोई, बाप रे कैसा था वो जहांँ।


ये एलियन की खबरें पढ़ने का ही सब नतीजा है,

मुझे ही बना दिया एलियन, कैसा सपना देखा है।


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