मैं कौन हूँ
मैं कौन हूँ


कौन हूँ मैं?
परम्पराओं में लिपटी सी
एक नारी
बंदिशों में जकड़ी सी
एक स्त्री
कभी देहज की वेदी पर
कभी सेज़ की वेदी पर
दी जाती मेरी आहुति
कभी मैं द्रोपदी बनकर
लगाई जाती जुए में
और हारने पर क्यों
निर्वस्त्र किया तूने
कभी बनकर राम की सीता
चली जाती हूँ वन पथ पर
उठाकर दुराचारी मुझे ले गया
बस इस बात के कारण
देनी पड़ी थी अग्नि परीक्षा
कभी मैं मीरा सी बनकर
पी जाती हूँ विष का प्याला
सजा इस बात की है कि
मुरली वाला है मेरा रखवाला
कभी मुझ को कुचला जाता है
किसी सुनी सी सड़क पर
कभी मुझ को मसल देते है
ये माता के गर्भ में
अजीब हालात है मेरे
जहाँ पत्थर हूँ गर मैं तो
पूजी जाती हूँ
वही गर मैं इंसान हूँ तो
मैं मारी जाती हूँ।
बस यही मेरा प्रश्न है
आखिर कौन हूँ मैं।