मैं जानती हूँ तुम मेरे हो
मैं जानती हूँ तुम मेरे हो


मुझे ग़म न होगा मेरे जाने का
मुझे दर्द होगा तेरे आँसू बहाने का
और कौन याद रखेगा मुझे
दो चार रोज़ गुज़रने के बाद,
मुझे तो इंतज़ार होगा
तेरा मुझको भुलाने का
देहांत होगा सिर्फ़,
जल कर लकड़ियों पर
ख़ाक तो जायेगा ये शरीर
पर तुम विदा न करोगे तो
कौन ज़िम्मा लेगा
मेरी आत्मा को मुक्ति दिलाने का ..
मैं जानती हूँ तुम मेरे हो
पर बन जाना मेरा सुकून
जब मेरी आख़िरी साँस टूटे
तो तुम मेरा हाथ थाम लेना
और किस में हुनर है सिर्फ़ छू कर
मुझे जन्नत दिखाने का...