मैं इंसान
मैं इंसान
सभी प्रजातियों से अलग
मुझे एक वरदान मिला है
सबको मिला है शरीर और जान
मुझे दिमाग भी मिला है
अब बात ये आती है कि
मुझे इसका फायदा क्या हुआ
कभी-कभी तो सोचता हूँ
मुझे सिर्फ इससे नुकसान मिला है
हाँ, पहले मैं बता दूँ
मेरी पहचान क्या है?
सिर्फ दिमाग होने की वजह से,
मुझे अलग पहचान मिली है।
मैं... मैं हूँ इंसान....
हाँ.. बिल्कुल आप की तरह
आप... मैं... हम सब... इंसान
आओ बताती हूं अब
इंसान होने का कितना
फर्ज अदा करते हैं हम
जीवन से मृत्यु तक
कितने पहलुओं से गुजरते हैं हम
लड़की के रूप में अगर जन्म मिला
तो पहले बेटी, फिर बहन, फिर पत्नी
और अंत में मां का फर्ज अदा किया
और जन्म मिला अगर लड़के का
तो बेटा, भाई, पति.. पिता...
ऐसे जीवन को पार करते हैं हम
लड़का-लड़की से परे भी
मुझे एक रूप में डाला जाता है
छक्का, हिजड़ा और ना जाने कितने
अपमानजनक शब्दों से बुलाया जाता है
चलो यह तो बात रही मेरे शारिरिक बनावट की
मानसिक तौर पर भी मुझे झंझोडा जाता है
पैदा होने से ही जिम्मेदारियों का बोझ
मुझ पर लाद दिया जाता है
अगर जंगली पशु मुझे मारकर खा जाता है
तो यह उनका आचरण समझा जाता है
मैंने अगर पशुओं को बंधक बनाया
और मारा पीटा तो मुझे हिंसक समझा जाता है
प्रकृति चाहे कितनी मर्जी तबाही मचा ले
उसे भगवान की मर्जी कहा जाता है
अपने जीवन विकास के लिए मैंने
कुछ पेड़-पौधों को काट दिया तो,
मुझे प्रकृति के साथ खिलवाड़
करने वाला बताया जाता है
छोटी-छोटी बातों का ध्यान
मुझे ही रखना पड़ता है
क्योंकि मैं हूं.... इंसान
और मेरे पास है दिमाग
दिमाग..
अब मैं इसे बोझ कहूँ या वरदान
समझ में नहीं आ रहा...
अंत में मैं इंसान
