मैं होता महज़ शून्य सा
मैं होता महज़ शून्य सा
मैं होता महज़ शून्य सा
तू पहली वो इकाई होती
जुड़ कर मुझ से फ़िर तू
बनी दहाई होती या होती
तू वर्णमाला का पहला अक्षर
तूझ से ही मेरी पढ़ाई होती
मैं लफ्ज़ लफ्ज़ दोहराता तुझको
तू मानों जैसे रब की रुबाई होती
रट लेता तुझे किसी पहाड़ा सा
या तू मेरे हाथों की लिखाई होती
गिनती तेरी होती मेरी साँसों में
जब तेरी सांस से मेरी सांस टकराई होती।