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मैं हँसता हँसाता हूँ !

मैं हँसता हँसाता हूँ !

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मैं यूँ ही नहीं आता जाता गुनगुनाता 

इठलाता हँसता और हंसाता हूँ !

वो पल जो साथ तुम्हारे बीतते हैं  

वो पल ही तो है जो मेरे अन्दर

दहकते दह्काते मचलते मचलाते हैं ! 


कुछ यूँ जैसे तुम बसी हो मेरे अंदर 

एक खुशगवार मौसम बनकर

कभी दिसंबर की ठण्ड बनकर 

मेरे साथ रजाई में दुबकी रहती हो !

 

कभी अप्रैल की रंगबिरंगी बसंत 

बहार बनकर रंग बरसाती रहती हो !  

कभी मई और जून की चिलचिलाती 

धूप बनकर झुलसाती रहती हो ! 


तो कभी अगस्त की सावनी फुहार 

बनकर बस भिगोती रहती हो ! 

मैं यूँ ही नहीं आता जाता गुनगुनाता 

इठलाता हँसता और हंसाता हूँ !


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