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Anjana Singh (Anju)

Abstract

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Anjana Singh (Anju)

Abstract

मैं ढूंढती हूं

मैं ढूंढती हूं

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ढूंढती हूं मैं कुछ बातें

अपने अंतर्मन के अल्फाजों में

कुछ मन के ख्वाबों खयालों में

कुछ रोज के कार्यकलापों में


ढूंढती हूं मैं कुछ बातें 

कुदरत के बिखरें रंगों में

संगीत के सुरमयी छंदों में

भाव विहीन हर बंदो में


 ढूंढ़ती हूं मैं कुछ बातें 

कुछ बड़ों की कही बातों में

बचपन की धुंधली यादों में

कुछ अपनें किए वादों में


 ढूंढती हूं मैं कुछ बातें

इस भागमभाग दुनिया में

कुछ आस लगाए चेहरों में

कुछ नकाब लगाए चेहरों में


 ढूंढ़ती हूं मैं कुछ बातें

बेरोजगार पड़े लोगों में

कुछ जकड़े गरीबी के साये में

भूखे-प्यासें बच्चों के चेहरें में


ढूंढती हूं मैं कुछ बातें

शहरों की सूनी संकरी गलियों में

टूटी-फूटी सी झुग्गी झोपड़ियों में

कुछ बेफिक्र लोगों की टोलियों में


ढूंढती हूं मैं कुछ बातें

कुछ अबलाओं की चीख में

कुछ दहेजों की भीख में

 मिलती जिंदगी की सीख में


ढूंढती हूं मैं कुछ बातें

दुनिया की मोह माया में

कुछ अपनों की छत्रछाया में

मां के आंचल की छाया में


ढूंढती हूं मैं कुछ बातें

दुनियादारी के मोल भाव में

कुछ लोगों की बेबसी में

और नित बरसते घाव में


ढूंढती हूं मैं कुछ बातें

हर रोज होती गुनाहों में

कमजोर को दबाने में और

 गुनहगार को छुपाने में


ढूंढती हूं मैं कुछ बाते

सौंधी मिट्टी की महक में

बेटियों की चहक में

उन्नत देश की झलक में।


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