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Maan Singh Suthar

Abstract Inspirational Others

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Maan Singh Suthar

Abstract Inspirational Others

मैं बुद्ध नहीं हूं .....

मैं बुद्ध नहीं हूं .....

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मैं बुद्ध नहीं हूं..........।

एकाकीपन खलता है मुझे

ये सन्नाटा मेरे हृदय में बेहद शोर करता है

खुद में खोकर कुछ पा लूं इतना सामर्थ्य नहीं मुझमें

नहीं नहीं.......ये एकांत नितांत भयावह है

इसमें कैसा आनन्द घोर अंधेरों की मानिंद लगता है

मैं बुद्ध नहीं हूं............।


ये युग भी वो नहीं की आज अशोक हथियार गिरा दे

असीम दुख की भयावहता हावी है असुरक्षित है

धर्म की फिर से परिकल्पना की आवश्यकता है

अकेलापन ही है हर ओर कहां भीड़ तलाश करूं

मैं बुद्ध नहीं हूं.............।


मृग फिर स्वर्ण रूप धरकर विस्मृत कर रहा है

सत्य अंधेरों में आज अकेला भटक रहा है 

लक्ष्मण रेखा धूमिल हो चुकी है, अंधकार हावी है

फिर कैसे अकेला कुछ कर पाऊंगा, सत्य खोज पाऊंगा

मैं बुद्ध नहीं हूं...............।


ये भौतिकता असत्य की परिचायक लगती है

अवसर के रूप में मानव रक्त की बहती धार और

भविष्य अंधकारमय असंतुलित और भयावह है

कल आज और कल के भेद को मैं कैसे अलग करूं

मैं बुद्ध नहीं हूं..................।


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