मैं बड़ा हूँ
मैं बड़ा हूँ
मैं बड़ा हुं मैं बड़ा हूँ, इन सबों में मैं बड़ा हूँ
मेरे सुनो थोड़े बखान सबसे उँचा मैं खड़ा हूँ
मैं बड़ा हुं मैं बड़ा हूँ
देखो मैं मुसलमान हूँ, मजहबों की जान हूँ
देखो न मेरी शान को मैं तो खुद ही शान हूँ
वक्त के शीशे में देखो ताजमहल सा मैं जड़ा हूँ
मैं बड़ा हुं मैं बड़ा हूँ
हम हिन्दुओं की ठाठ से कौन भला बच पाएगा
राहों में जो भी आएगा धुल संंग उड़ जाएगा
झुकता हुआ लगता जहाँ जिद पे जो अपनी मैं अड़ा हूँ
मैं बड़ा हुं मैं बड़ा हूँ
मैं सिख, मैं इसाई, मैं पारसी, मैं निरंकार हूँ
बाकी झूठ केवल मैं ही सच्चे धर्म का आकार हूँ
रब के ही नजदीक एकदम कील जैसा मैं गड़ा हूँ
मैं बड़ा हुं मैं बड़ा हूँ
कोई नहीं कहता यहाँ सुनो जरा श्रीमान
मैं हिन्दु नहीं मुस्लिम नहीं मैं हुंँ एक इंसान
कोई जरा देखे मुझे तन्हा अकेला मैं पड़ा हूँ
मैं बड़ा हूँ मैं बड़ा हूँ।
