Himani Sabharwal

Drama

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Himani Sabharwal

Drama

'मैं', 'आप', 'हमारी इज्जत'

'मैं', 'आप', 'हमारी इज्जत'

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तेज़.तर्रार हो तो,

आप डर जाते हैं,

वो अगर कुछ ज़्यादा न बोले,

तो भी आप चकित,

भयभीत नज़र आते हैं।


नँगी हों टाँगें उसकी,

चाहे सलवार ने ढकी हों,

अजीब शख्स हैं जनाब,

तौहमतें तो लगा आते हैं।


क्या ख़ाक किया,

जो लगा ली कुण्डी,

दे दिये पहरे,

ओढ़ा दी चुन्नी।


अपने घर की इज्ज़त,

बचा लाते हैं,

पर वो घर में बैठी,

इज्ज़त क्या करेगी ?


जो आप ही के बेटे,

लुटा आते हैं,

चिराग़ क्या ख़ाक, सींचे आपने,

वो चिराग, कहिये ?


वो जलते चिराग़ जो,

इंसानियत की लौ तक,

बुझा आते हैं।


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