मायका और ससुराल
मायका और ससुराल
जिस तरह मां के बिना
मायका ,मायका नहीं लगता
उसी तरह सास के बिना
ससुराल नहीं जांचता
कभी रिश्तों का बोझ होता है
कभी संस्कारों का असर होता है
मां से सजता जैसे मायका
उसी तरह सास के बिना
ससुराल का ना कोई जायका
जिंदगी का एक रंग है मायका
दूजा रंग होता ससुराल
दोनों ही होता प्यारा रंग
जिसे पाकर एक लड़की
हो जाती है निहाल
वह जगह है मायका
जो लड़कियों को अज़ीज़ होती है
पर बहू के लिए ससुराल भी
प्यारी दहलीज होती है
लड़कियां अपनी ख्वाहिशें
क्यों सिर्फ मां को ही बताती है
ससुराल में सास की नजरें भी
उन्हें खुलकर सहलाती है
एक मां भी तो
कितनी देती है उलाहनें
फिर क्यों एक सास की
बातें लगती हैं जैसें तानें
सदा से स्त्रियों ने
दो घरों में पनाह पाई है
मायका हो या ससुराल
दोनों के लिए नहीं वो पराई है
माना कि मायके में खुशियां
बिन मांगे मिल जाती है
पर ससुराल को भी अपना कर देखों
वो खुशियां भी अपनी हो जाती है
माना कि मां का प्यार और मायका
बेहद हमें भाता है
पर सास और ससुराल भी तों
हमेशा याद आता है.
