मातृभूमि के कर्ज
मातृभूमि के कर्ज
अतुलनीय वह वीर प्रताप,
जो सेवा देश की करता हैं।
मातृभूमि पर कर तन मन अर्पित,
मुस्कान मुख पर धरता है।
दुश्मन को सदा पछाड़ने,
दहाड़ सिंह की करता है।
है अद्भुत वो वीर सेनानी,
जो मातृभूमि पर मरता है।
कितने भी हम पुष्प चढ़ाये,
कितना भी सम्मान करे
कर्ज अदा न कर पाएंगे,
उन वीर जवानों का।
देश भूमि पर जो बलिदान हुए,
हमारा कल सजाने को।
चलो आज कुछ हम भी
कुछ अद्भुत से काज करें।
कर्ज चुकाने को वसुधा का,
प्रेम, सौहार्द का विस्तार करें।
कर्ज बहुत है मातृभूमि के,
हम सब भी सम्मान करें।
हौसला बढ़ाने वीरों का,
हम सदा ही साथ रहे।
भारत वीर वीरांगनाओं का देश,
यह सदा ही याद रहे।
मातृभूमि की सेवा को,
हम सब भी तैयार रहे।।
जयहिंद
