मासूमियत
मासूमियत
बताओ ना मम्मी !
मेरी क्या गलती थी ?
जो मुझे ऐसी सज़ा मिली।
मेरी खूबसूरती
और मेरी मासूमियत को,
ऐसी सज़ा
क्यूँ बेवजह मिली ?
मैं तो उसकी बेटी जैसी थी,
फिर भी मुझे उसने ऐसी नज़रों से क्यूँ देखा ?
अपनी दो पल की खुशी पाने के लिए,
मुझे बेटी का रूप देकर क्यूँ रोका ?
जब बेटी का रूप दे दिया,
तब उसने अपना गलत हाथ मुझ पर क्यों फेरा ?
अब भूल गयी वो मासूमियत मैं,
जब देखा उसका हवस वाला चेहरा !
बताओ ना मम्मी !
मेरी क्या गलती थी ?
जो मुझे ऐसी सज़ा मिली।
अब तो मैं इस जहान में नहीं,
क्या करती इस गलत समाज में रहकर ?
गलत बात सुनती लोगों की,
या अंदर ही अंदर रोज़ मरती
ऐसी बातों को सहकर !
इसीलिए हिम्मत ना रही मुझमें,
अब उठने की।
एक बार मासूमियत को खोकर,
बार - बार इस अत्याचार को सहने की !
आप ही बताओ ना पापा !
क्या करती मैं ज़िंदा रहकर ?
कानून से अगर सहायता माँगती तो,
लग जाते उनको सज़ा दिलाने में सालों - साल।
तब तक मैं खुद में ही रोज़ मरती,
या मरती हर एक पल में सौ बार !
अब आप सबको मैंने अलविदा कह दिया।
क्यूँकि उस बात को सोच कर मैं ज़िंदा रह नहीं पाती।
समाज के लोगों के ताने को
मैं कब तक ऐसे सह पाती !
इसीलिए तो खुद को जुदा कर दिया।
आखिरी सवाल यहीं पर रह गया मेरा,
बताओ ना पापा !
बताओ ना मम्मी !
मेरी क्या गलती थी ?
जो मुझे ऐसी सज़ा मिली।
मेरी खूबसूरती और मेरी मासूमियत को,
ऐसी सज़ा
क्यूँ बेवजह मिली ?