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Aman Alok

Crime Drama

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Aman Alok

Crime Drama

मासूमियत

मासूमियत

1 min
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बताओ ना मम्मी !

मेरी क्या गलती थी ?

जो मुझे ऐसी सज़ा मिली।

मेरी खूबसूरती

और मेरी मासूमियत को,

ऐसी सज़ा

क्यूँ बेवजह मिली ?


मैं तो उसकी बेटी जैसी थी,

फिर भी मुझे उसने ऐसी नज़रों से क्यूँ देखा ?

अपनी दो पल की खुशी पाने के लिए,

मुझे बेटी का रूप देकर क्यूँ रोका ?


जब बेटी का रूप दे दिया,

तब उसने अपना गलत हाथ मुझ पर क्यों फेरा ?

अब भूल गयी वो मासूमियत मैं,

जब देखा उसका हवस वाला चेहरा !


बताओ ना मम्मी !

मेरी क्या गलती थी ?

जो मुझे ऐसी सज़ा मिली।


अब तो मैं इस जहान में नहीं,

क्या करती इस गलत समाज में रहकर ?

गलत बात सुनती लोगों की,

या अंदर ही अंदर रोज़ मरती

ऐसी बातों को सहकर !


इसीलिए हिम्मत ना रही मुझमें,

अब उठने की।

एक बार मासूमियत को खोकर,

बार - बार इस अत्याचार को सहने की !


आप ही बताओ ना पापा !

क्या करती मैं ज़िंदा रहकर ?


कानून से अगर सहायता माँगती तो,

लग जाते उनको सज़ा दिलाने में सालों - साल।

तब तक मैं खुद में ही रोज़ मरती,

या मरती हर एक पल में सौ बार !


अब आप सबको मैंने अलविदा कह दिया।

क्यूँकि उस बात को सोच कर मैं ज़िंदा रह नहीं पाती।

समाज के लोगों के ताने को

मैं कब तक ऐसे सह पाती !

इसीलिए तो खुद को जुदा कर दिया।


आखिरी सवाल यहीं पर रह गया मेरा,

बताओ ना पापा !

बताओ ना मम्मी !

मेरी क्या गलती थी ?

जो मुझे ऐसी सज़ा मिली।

मेरी खूबसूरती और मेरी मासूमियत को,

ऐसी सज़ा

क्यूँ बेवजह मिली ?


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