माँ
माँ
न चुनरी लेती है,
न आँचल होता है,
मैं बाज़ार में देखती हूँ ।
आधुनिका 'माँ' को घुटने,
तक छोटी फ्राक पहने,
पर,अपने नन्हे को वैसे ही,
सीने से चिपका कर
स्नेह लुटाती, चुमती, मुस्कुराती
नन्हें की किलकारियाँ,
कभी माँ के बालों से,
अठखेलियाँ करता नन्हा ,
जब नन्हे को लगती भूख,
वो आधुनिका , झट से,
बैग से स्कार्फ़ निकाल कर,
एक कोने में बैठकर ,नन्हे
की भूख शांत कराती,
मातृत्व लुटाती, माँ ,
माँ बस...माँ होती है ।
आधुनिका 'माँ ',
कभी पुलिस की यूनिफार्म,
कभी डॉक्टर, कभी टीचर,
कभी इमरजेंसी में डयूटी ,
निभाती आधुनिका माँ ,
फिर भी अपने नन्हे को,
उंगली पकड़कर चलना सिखाती माँ,
नन्हे की बाल-सुलभ हर,
पल-पल की यादों को ,
सहेजती ,आधुनिका माँ ,
माँ ...बस...माँ होती है ।
