माँ
माँ
न चुनरी लेती है,
न आँचल होता है,
मैं बाज़ार में देखती हूँ ।
आधुनिका 'माँ' को छोटी फ्राक पहने हुए
पर,अपने नन्हे को वैसे ही,
सीने से लगा कर
स्नेह लुटाती, चूमती, मुस्कुराती
अठखेलियाँ करता नन्हा ,
जब नन्हे को लगती भूख,
वो आधुनिका , झट से,
स्कार्फ़ निकाल कर, ढक कर नन्हे शिशु को,
एक कोने में बैठकर , भूख शांत कराती,
मातृत्व लुटाती, माँ ,
माँ तो बस...माँ होती है ।
आधुनिका 'माँ ',
फिर भी अपने नन्हे को,
उंगली पकड़कर चलना सिखाती माँ,
नन्हे की बाल-सुलभ हर,
पल-पल की यादों को ,
सहेजती ,आधुनिका माँ ,
माँ ...बस...माँ होती है ।