माँ
माँ
शब्द नहीं मेरे शब्दकोष में,
जिससे माँ तेरा वर्णन करूँँ,
जग सुंदर सम्पूर्ण शब्द माँ,
उसको मैं कैसे पूर्ण करूँ।
ख़्वाहिश है सिर पे मेरे हमेशा,
बस तेरी दुआओं का साया हो,
आगोश में लेट के तेरे मैं,
बस तेरी लोरी का श्रवण करूँ।
वो तपती धूप में छाया है,
वो प्यार की पावन माया है,
ठुमक चलत राम संग कौशल्या,
नंद गोपाल ने भी तुम्हें मनाया है।
माँ तेरी मौजूदगी ने ही घर में
सारी ख़ुशियों को बुलाया है,
माँ तेरी महिमा को तो खुद ,
जगदाता नारायण ने भी गाया है।
आँचल में जिसके समाए जग सारा,
तेरे चरणों मे स्वर्ग समाया है,
निश्छल प्रेम का सागर हो,
मैने सब कुछ तेरी दुआओं से पाया है।
मैं किस ज्ञान पर अभिमान करूँ,
चलना पढ़ना भी तुमने सिखाया है,
भूखी प्यासी रहकर भी,
हर फ़र्ज़ तुमने निभाया है।
हर पीड़ा सह मुझे चैन दिया,
उस आँचल का कर्ज़ कैसे अदा करूँ
उस बेशकीमती रत्न का,
फर्ज़ कैसे मैं अदा करूँ।
श्रवण कुमार नहीं अब दुनिया में,
कल युग में माँ को बिलखते देखा है।
खुद का निवाला खिलाया बच्चों को,
उस माँ को रोटी के ख़ातिर भटकते
देखा है।
पत्थर की मूरत को सब पूजे मंदिर में,
बाहर संजीवन सागर को भीख
मांगते देखा है।
चित्र में समाहित कर फ़ेसबुक
व्हाट्सएप पर, अपना गुणगान
करने वालों को देखा है।
मैं तो रोज मनाऊ मातृ दिवस,
ताउम्र उस ज़न्नत का गुणगान
करूँ।
जो खुद ज्ञान का सागर हो ,
उसको इस पृष्ठ में समाहित
कैसे करूँ ।
शब्द नहीं मेरे शब्दकोष में,
जिससे माँ तेरा वर्णन करूँ।
जग सुंदर सम्पूर्ण शब्द माँ ,
उसको मैं कैसे पूर्ण करूँ।।