माँ
माँ
तू कहीं जाती थी तो
आँख भर आती थी
तुझे वापास देख फिर
चेहरे पर मुस्कान आ जाती थी...
वैसे तो घंटो तक नींद नहीं आती थी
पर तेरी लोरी सुनके न जाने
आँख कब लग जाती थी...
आज फिर तुझसे लोरी सुनने को जी चाहता है
उस बचपन में फिर जीने को जी चाहता है...
उन नादानियो की कश्ती में
फिर सवार होना चाहता हूँ...
माँ, तेरे आँचल में सर रख के फिर सोना चाहता हूँ...
तेरा हाथ पकड़ के चलना सीखा
चलते चलते गिरना,
उठके वापस चलना तुझसे ही सीखा...
तेरे दुलार के आगे किसका प्यार कहाँ टिक पाया
मेरे हर गम को मिटाती तेरी ममता की छाया...
मेरे हर रास्ते पर खिलते तेरी दुआओं के फूल
स्वर्ग की लालसा क्यों करूँ मैं..
उससे ज्यादा पवित्र है तेरे चरणों की धुल...
उन चरणों को अब फिर छूना चाहता हूँ
माँ, तेरे आँचल में सर रख के
फिर सोना चाहता हूँ...
तू जब चुप रहती है
बड़ा अजीब लगता है
कभी कभी तेरा गुस्सा भी
बड़ा अज़ीज़ लगता है...
तेरे होने से में खुद को मुकम्मल मानता हूँ
भगवन से पहले मैं तुझे जानता हूँ...
महंगे होटल में जाकर भी
अपनी भूख नहीं मिटा पाता हूँ...
तेरे हाथ से एक निवाला फिर खाना चाहता हूँ...
तेरी गोद में सर रखके फिर सुकून पाना चाहता हूँ
माँ, तेरे आँचल में फिर सोना चाहता हूँ...
माँ, तेरे आँचल में फिर सोना चाहता हूँ...।।
