माँ
माँ
वो चूल्हे की रोटी
वो माँ का प्यार
लौटा दे मुझे कोई
फिर से एक बार
दशकों से न ली खबर
कोई, न पूछा मेरा हाल
घर पहुंचते ही माँ
कर देती थी...
दस मिनट में सौ सवाल
खाना खाया, नहीं
खाया होगा गुले गुलज़ार
हर निवाले पर मिन्नत
वो करती बार बार
नहीं चाहिए उसे कोई
स्पा और पार्लर जनाब
चूल्हे का धुंआ ही
बना देता उसे बेमिसाल
माथे की बिंदी पूरा
कर देती उसका श्रृंगार
अन्नपूर्णा मेरी माँ, उसके
भोजन में था प्यार, बेशुमार।
