STORYMIRROR

Manisha Maru

Fantasy Children

3  

Manisha Maru

Fantasy Children

मां

मां

1 min
183

"मां" के बिना हर कहानी अधूरी।

हर हाल में करती वो तो अपने बच्चों की इच्छा पूरी।

एक बार जो झिड़क देती "मां" अगर,

फिर बार बार हृदय से लगा, माथे को चूम

करती हे पल पल वो स्नेह आलिंगन।

"मां" शब्द तो होता अपने आप में ही पावन।

उसके बिना लगता हर पल सूना सावन।

हर "मां" को अपने बच्चे लगते जिगर के टुकड़े,

गोरे हो या काले, सुधरे हो या बिगड़े,

ले ले बलैया "मां" तो बस हर पल नजर उतारे।

मां" के नाम पे कई लेखनी का लेख है गढ़ता,

उनके आगे तो देवताओं का सर भी जाता हे झुकता।

मेरी लेखनी भी जब झुक– झुक कर लिखती है "मां" का नाम,

यूं लगता है उस वक्त.. 

यूं लगता है मुझको उस वक्त, 

जैसे हो गए हो मेरे चारों धाम...

जैसे हो गए हो मेरे चारों धाम



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Fantasy