माँ, तुम्हारा होना चाहता हूँ
माँ, तुम्हारा होना चाहता हूँ
दीदी ने पूछा मुझ से
अंतिम समय है माँ का
क्या तुमने
क्षमा माँगी माँ से
कहा मैंने, जिनके हृदय में
मेरे लिए क्षमा, मेरे जन्म से
हिम्मत नहीं कि
शब्दिक क्षमा माँगू, उनसे
देख, उन्हें पोती रिची के
नयन झर झर बहते हैं
वे बोली ना रोओ बेटी
यहाँ, ना देह अपनी किसी की
पूछा स्वर्ग से, बाबूजी ने
माँ के लिए कर सके कुछ तुम
मेरी चुप्पी पर बोले- न करो रंज की
काल समक्ष हर कोई लाचार है
भाई असहाय, पूछा उसने, भईया
समझ न आता, क्या करें हम
मैंने कहा- भाई जितना हो सके
सेवा सुश्रुषा बस कर दो तुम
एक समय था बाबूजी को
माँ शर्मिला लगा करती थीं
तन से नहीं अब मन से माँ
तब की शर्मिला से सुंदर हैं
अब जीर्ण काय लेटी माँ का
शक्तिशाली काल के आगे
साहस ना डिगता है
कि आत्मा का बिगड़ना कुछ ना है
सारे दृश्य व्यथित मुझे करते हैं
भावुक हृदय में विचार ये भरते हैं
माँ, तुम्हारे कर्ज उतारने
मैं, बेटा कामना करता हूँ
अगले जन्म में माँ, मैं
माँ, तुम्हारा होना चाहता हूँ
माँ, तुम, मेरा बेटा होना कि
माँ होकर, उऋण मैं हो पाउँगा