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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Others

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

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जीवन उत्सव - उसमें मेरी पीड़ा

जीवन उत्सव - उसमें मेरी पीड़ा

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जब देखता चलकर बहुत, थक जाता है कोई पथिक

पैदल चलने के सिवा नहीं, पास उसके कोई विकल्प 

व्यय नहीं कर सकता वह, लेने कोई वाहन सेवा में 

प्रतिदिन देख कई दृश्य ऐसे, पीड़ा मुझे हो जाती है।


सार्वजनिक स्थलों में विक्षिप्त, दिखते कई पड़े-घूमते 

हो जाने पर अवस्था ऐसी, त्यागा उन्हें स्वयं अपनों ने 

ठण्ड में सिकुड़े पड़े किसी कोने में, तब भी रहें ठिठुरते ही

भूखे ही शायद वे हों द्रष्टव्य इनसे, पीड़ा मुझे हो जाती है।


मासूम कई किशोरवय में ही, भटकते हैं प्लेटफार्मों पर

जन्मे कोख से नारी के, शिकार हुई जो किसी कामी की 

या अनाथ हो अबोध उम्र में, चल-बसने से माता पिता के

शोषण होता देख इन मासूमों का, पीड़ा मुझे हो जाती है।


गीतकार कामना में धन की, रचना देते हलके अर्थ की

रचते गीत नाम प्रयोग कर, शीला,मुन्नी और चमेली

निकले जब गृह से नारी, लेकर प्रयोजन घर बाहर के

दुष्ट इनसे फिकरे करते नारी पर, पीड़ा मुझे हो जाती है।


सजती हैं दुकानें, भव्य एवं सुन्दर कई सामग्रियों से

आता कोई क्रय करने जब, जरुरत पर इन्हें अपनों की

पसंद होने पर सुनता जब कीमत, लौटता वह मन मसोसे

विवशता पर ऐसे क्रयकर्ता की, पीड़ा मुझे हो जाती है।


ये हैं उदाहारण कुछ थोड़े, पर दृश्य उत्पन्न रोज अनेक

विश्व में मानव संस्कृति विकसित हो गई जब इतनी

हैरान समाज व्यवस्था इस हद तक कोई वंचित क्यों? 

बदल सकूँ सामर्थ्य नहीं अतः, पीड़ा मुझे हो जाती है।


'राजेश', कहते हैं लेखनी में कवि की ताकत बहुत है 

इसलिए मै बना कवि, क्या मिलता सामर्थ्य मुझे है?

बदले इस परिदृश्य को, जगा सकता हूँ ऐसी चेतना?

क्योंकि दयनीय ये दृश्य देख, पीड़ा मुझे हो जाती है।





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