मां-तेरी याद
मां-तेरी याद


युं तो मैं बहुत खुश हूं मां,
पर फिर भी तुझे बहुत याद करती हूँ।
यूँ तो बहुत है खैरियत पुछने वाले,
पर तेरी परवाह याद करती हूँ।
याद आती है तेरे आंचल की
जिसमें लिपट जाती थी मैं,
न जाने कब उस आंचल में
सुकुन की नींद आ जाती थी मां।
अरसा बीत गया उस नींद को
अब तो सेज मखमली है,
पर वो सुकुन की नींद कहां है मां।
युं तो बहुत खुश हूं मां,
पर फिर भी तुझे बहुत याद करती हूँ।
एक वो वक्त था मां जब मेरे आंसू
आंखों से टपक कर गालों तक आते
ही तेरे नरम हाथ पोंछ डालते थे।
और एक ये वक़्त है
जब मेरे आंसू
युं ही थक कर सुख जाती है।
बदलते वक्त कि गवाही मेरी
कुछ यादें है।
युं तो बहुत खुश हूं मां,
पर फिर भी तुझे बहुत याद करती हूँ।
याद है मुझे कैसे मेरे एक
खरोंच भर से मां
तुम घबरा जाती थी,
चोट मुझे लगता था पर
महसूस तू करती थी।
पर अब जब तेरे साया से दूर हूँ
तो चोट का दर्द महसूस करती हूँ।
युं तो बहुत खुश हूं मां,
पर फिर भी तुझे बहुत याद करती हूँ।
तेरे हाथों का भोजन मां
अब भी याद है मुझे
भोजन तो अब भी खाती हूँ मां
पर वो स्वाद कहां आता है।
यूँ तो बहुत खुश हूं मां,
पर फिर भी तुझे बहुत याद करती हूँ।