मान लूँ कैसे
मान लूँ कैसे
तुम कहो तो मान लूँ कैसे ,
सूरज उगा है जान लूँ कैसे!
अब भी आंगन कैद अंधेरों से,
सुबह हो गयी जान लूं कैसे!!
अगर अंधियारा घना है इतना
समाया हुआ हर जर्रे में इतना
तम हटा नहीं गम छँटा नहीं
खुशी की चमक जान लूं कैसे!!
हर सूरज का फर्ज गर होता
साये के तले फिर क्यों छिपता
अगर वंचित है वांछित प्रकाश
पित्तल को कांचन मान लूँ कैसे!!
ये जो खामोशी पसरी हुई है
राग अलाप जो बिसरी हुई है
विलाप बिलखते सरगमों का सुन
आलाप मनमोहक मान लूँ कैसे!!
ऐ प्रकाश आकाश छोड़ा अगर
अंतिम छोर का तम तमाम कर
नाम का रोशनी काम न आये तो
विकास का प्रकाश मान लूँ कैसे!!