मां की ममता
मां की ममता
त्याग प्रेम करुणा दया,
का है मां आगार।
मां के बिन इस जगत मे ,
जीवन को धिक्कार ।।
कष्ट घिरत जब पुत्र तब ,
मां ही होत सहाय ।
हर मां ये ही चाहती दुख
दुख सन्तति ना पाय ।।
निज से भी रखती अधिक ,
निज अंशों का ध्यान ।
पावौ सुख सम्मान जग,
उसका यह अरमान ।।
मन्दिर मस्जिद जाय के,
मांगे तेरी खैर ।
राखि मास नव गर्भ मे ,
करहि प्रेम नहि बैर ।।
जन्मे शिशु तव मात को,
निधि सबही मिलि जात।
बाजे मंगल साज सब ,
हर्षित लखि शिशु गात ।।
जब रोबे शिशु मात तब ,
कोटिन जतन कराहि ।
बिस्तर जब गीला करे ,
खुद गीले मे जाहि ।
पीकर खुद जो नीर को ,
करवावै पय पान ।
माता है जग मे सुह्रद ,
सुख की अनुपम खान ।।
माता को निज देत दुख ,
वे है असुर समान ।
दुख पाते वे सब सदा,
तिनहि बिलोकत हान।।